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Original Stories by Author (11-14)

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra

कहानी 12:
कुछ समय की बात है कि एक सरकारी कर्मचारी को टाइम मशीन से 2025 में प्रायोगिक तौर पर भेजा गया। कर्मचारी 2025 में पहुँच के पाया कि केंद्र और राज्य हर जगह एक ही पार्टी विशेष की सरकार है। सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 189% घटाए जाने पर कर्मचारियों में खुशी की लहर है क्योंकि गनीमत है कि इस बार सरकार ऋणात्मक DA का 100% बेसिक पे में मर्ज नही किया वरना वेतन और कम हो जाता। HRA बन्द कर दिया गया है क्युकी कर्मचारी अपने होम टाउन से बुलेट ट्रेन से आते है। SSC इत्यादि आयोग खत्म कर दिये गए है क्यूंकी अब कोई भी टैक्स या ऑडिट डिपार्टमेंट बचा ही नहीं । सभी डिजिटल भारत के तूफान मे खत्म हो गए है और प्राचीन काल मे भर्ती सभी कर्मचारियो को गौ रक्षक दल या स्वच्छता मिशन मे लगा दिया गया है । UPSC से इस बार 2 वेकेंसी ही निकाली गई है क्योंकि संविधान के 1002 वे संशोधन के बाद अब या तो रोबोट या रिलायंस के कर्मचारी उन कार्यो को संपादित कर रहे है । सरकारी कर्मचारियो के लिए पहले वेतन आयोग की सिफ़ारिश लागू करने के प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है । ये सब मंजर देख कर उस सरकारी कर्मचारी को हृदयाघात आने ही वाला था की वर्तमान समय मे बत्ती चली गई और टाइम मशीन बंद होने से कर्मचारी वापस वर्तमान मे आ गया।
सुना है आजकल वह कर्मचारी चिकित्सावकाश ले कर दिन मे 4 -4 घंटा ध्यान कर रहा है ताकि मानसिक तनाव से मुक्ति पा सके ।
--नीलेश मिश्रा
(PS: कहानी सिर्फ हास्य रस के उद्देश्य से लिखी गई है । लेखक सरकारी नीतियो आ प्रबल समर्थक है )

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कहानी 13:
एक दिन एक जनाब जो किसी कार्यालय के मुखिया थे, न्यूटन मूवी देख के आये। कहानी इतनी पसंद आई कि अपने हाथ पे If you change nothing, nothing will change गुदवा लिए और उन्होंने ठान लिया कि कम से कम उनके कार्यालय में अब से सब नियमानुसार होगा। अगले ही दिन उन्होंने लेट आने पर कार्यालय की एक महिला कर्मचारी को फटकार लगाई तो जनाब को harrasmant का केस दर्ज करने की धमकी मिल गई। फिर जब चपरासी को दिन में 5 घंटे गायब रहने पर स्पष्टीकरण मांगा तो चपरासी ने 2 महीने का मेडिकल ले लिया। एक कर्मचारी को पब्लिक से अभद्रता पूर्ण बात करते पकड़ा तो कर्मचारी ने तुरंत जातिगत भेदभाव करने हेतु यूनियन को बुला लिया। खैर पहला दिन किसी तरह गुजरा। अगले दिन किसी पब्लिक ने कार्यालय के एक वयोवृद्ध कर्मचारी को सबके सामने थप्पड़ मार दिया तो जनाब ने पुलिस बुला ली, पर ये क्या पुलिस ने जनाब को ही पीट दिया और चेतावनी देके चली गई। ये तो बाद में किसी ने बताया कि पब्लिक किसी नेताजी के खास रिश्तेदार थे। खैर जनाब ने हिम्मत नही हारी और विभागाध्यक्ष के माध्यम से शिकायत दर्ज कराने हेतू संबंधित नियम की सत्यापित प्रति के साथ पत्र लिखा। अगले दिन जनाब के खिलाफ किसी कंडक्ट रूल के violation में जांच बिठा दी गई और जनाब को अंडमान निकोबार के किसी कार्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
PM की नीतियों की पानी पी पी के आलोचना करने वाले जनाब कुछ change तो नही कर पाए , हालांकि ज्ञान जरूर मिल गया कि change लाने वाला न्यूटन भी सिर्फ 112 मिनट ही टिका।
सुनने में आया है कि जनाब कोई टैटू मिटाने वाला ढूंढ रहे है। कोई मिले तो उन्हें बता दे।
--नीलेश मिश्रा
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कहानी 14:
5 मित्र थे - सत्तापक्ष 1, सत्तापक्ष 2, विपक्ष 1, विपक्ष 2 और बुद्धिजीवी । पांचों के गुण उनके नामानुरूप थे । जहां सत्तापक्ष 1,2 हमेशा विपक्ष 1, 2 से लड़ते रहते थे वही बुद्धिजीवी महोदय हमेशा तटस्थ रहते थे और हमेशा वही पक्ष लेते थे जो उन्हे सही लगता था क्यूकी उनके अनुसार शिक्षा का असली लाभ वही उठा रहे थे । बहरहाल सभी मित्रो मे बुद्धिजीवी महोदय की बड़ी इज्जत थी, वो अलग बात है की जब भी सत्तापक्ष और विपक्ष वालो मे बहस या झगड़ा होता था तो बुद्धिजीवी महोदय सदैव निष्पक्ष opinion देते थे । उनका मानना था न लेफ्ट सही है न राइट, किसी भी विचारधारा की कट्टरता उस विचारधारा की validity ही खत्म कर देती है । वो बंगाल और केरल सरकार की नीतियो का उतना ही विरोध करते थे जितना गुजरात और मध्य प्रदेश की सरकारो का । यहाँ तक की यूपी के पिछले चुनाव मे भी कोई पार्टी पसंद न आने पर वो NOTA का बटन दबा आए थे । कालांतर मे एक बार कुछ दबंगों ने मोहल्ले मे धाबा बोल दिया । सत्तापक्ष1 और सत्तापक्ष 2 अपने खास मित्रो को बुला लाए और एक साइड होके दबंगों को आंखे तरेरने लगे । इसी तरह विपक्ष 1 और विपक्ष 2 भी मित्र बुला लाए और दबंगों का सामना करने को तैयार हो गए , दबंगों की इज्जत का सवाल था इसलिए उन्होने अकेले खड़े बुद्धिजीवी महोदय को पीट दिया । उन्हे बचाने न सत्तापक्ष वाले आए न विपक्ष वाले क्यूकी दोनों पक्षो को लगा की भैयाजी कौनसा अपना साथ देंगे।
पिटने के बाद बुद्धिजीवी महोदय को ज्ञान की प्राप्ति हुई की निष्पक्ष ज्ञान आपको समाज मे इज्जत दिला सकता है पर बचा नहीं सकता । उसके लिए आपको किसी एक पक्ष को चुनना ही पड़ता है । आजकल बुद्धिजीवी महोदय गूगल पर Left और Right के pros & cons पढ़ते हुए नजर आ रहे है ।
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