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Original Stories By Author (53): Awasthi Vs Ghaplu

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra

कहानी 53:
"यार ये अवस्थी तो बड़ा काम का अदमी है, अभी नया सॉफ्टवेयर जो विभाग ने लांच किया है उसकी बड़ी गहरी समझ हो गई है इसको। देखो तो कैसे फलाने ऑफिस का काम बढ़िया तरीक़े से सम्भाल रखा है।" ट्रांसफर सीट वाले बड़े बाबू ने घपलू भइया से कहा।
घपलू भइया की पोस्टिंग 1 साल पहले उनके काम न करने की आदत से परेशान होकर बड़े साहब ने शहर से बाहर 30 किमी दूर कर दिया था औऱ भइया वहां भी लेथन फैला दिए। चलते हुए कंप्यूटर को खराब बताने की कला में प्रवीण घपलू भैया डीलिंग करने और देने दोनों ही विद्याओ में पारंगत थे।
अवस्थी भइया विभाग के नए नवेले दूल्हा थे जिनकी हनीमून के लिए EL की Application अभी 3 महीने के बाद भी प्रशासनिक कार्यालय में पेंडिंग पड़ी थी क्योंकि विभाग के जल्दबाजी में लांच किए गए नए सॉफ्टवेयर को चलाने की पूरी जिम्मेदारी इन्ही के कंधों पे थी। अब तेज तर्रार और कार्य कुशल होने के कुछ दुष्परिणाम तो झेलना ही पड़ते है लेकिन अवस्थी भैया तब भी खुश थे क्योंकि घर से पास में पोस्टिंग थीं।
कालान्तर में ट्रांसफर बाबू ने बड़े साहब के कान में ये बात डाल दी कि "साहब अवस्थी और घपलू दोनों को Interchange कर दिया जाए तो दोनों जगह सही रहेगा वरना घपलू के Pending work के चक्कर मे कहीं आप ही न नप जाएं।"
अब घपलू भैया शहर के अंदर मौज काट रहे है और अवस्थी भैया घपलू भैया का किया छीछालेदर साफ कर रहे है। और इसी तरह दोनों सहजीवों की नौकरी कटती रहेगी।
जय हो।
(नोट: इस कहानी का 1854 में स्थापित हुए विभाग से कोई सम्बन्ध नही है और नवाबो के शहर के साथ तो इसका दूर दूर तक कोई लेना देना नही है)
--नीलेश मिश्रा

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